16/10/2007


खामोंशिया भी करती मेरे यार कि

मुझ से बातें सी है

फिर ना जाने क्यों उनको चुप रहने कि

कुछ आदत सी है॥


ज़ालिम कहता है के पीता नही है वोह

कोई बता दे

फिर क्यों आँखों मे उनकी नशे

कि आहट सी है ॥


सामने खडे हो कर जब करते है बातें
छूती मेरे गालों को

उनकी सांसों कि गर्माहट सी है॥


करती है मुझको
जो प्यार करने को मजबूर
बातों में उनकी एक शरारत सी है ॥


कोई बतला दे, के कैसे मैं कहूँ उन से

के उनको पाने की दिल में,

दबी एक चाहत सी है॥


ऋतू सरोहा


7 comments:

डाॅ रामजी गिरि said...

कोई बतला दे, के कैसे मैं कहूँ उन से


के उनको पाने की दिल में,


दबी एक चाहत सी है॥

bahut hi sundar prem-sandarbh ki rachna है, Ritu जी.

अमिय प्रसून मल्लिक said...

कोई बतला दे, के कैसे मैं कहूँ उन से
के उनको पाने की दिल में,
दबी एक चाहत सी है॥

...in fact, a heart-touching one.

विपिन चौहान "मन" said...

bahut khoob rachna ke ant ne bahut prabhaavit kiya hai
dil ko choone main poori tarah se samarth hai aap ki rachna ritu.
bahut badhiya
yu hee likhte rahiye
badhaai ho

ख्वाब है अफसाने हक़ीक़त के said...

कोई बतला दे, के कैसे मैं कहूँ उन से


के उनको पाने की दिल में,


दबी एक चाहत सी है॥

bahut khoob likha hai..Ritu ji. Ant bahut hi prabhaavi tathaa dil ko chhu lene wala hai..
Deepak

manish vermani said...

hey

manish vermani said...

hey ritu

i must say ki tum to bahut achi
shayar ho

mujhe nahi pata tha ki tum itni achi shayari bhi likhti ho

ab se to hum aapke fan ho gaye

hats off to u

keep smiling dear and aise hi shayari karti ho

"जीत_इन्दौरी" said...

कोई बतला दे, के कैसे मैं कहूँ उन से
के उनको पाने की दिल में,
दबी एक चाहत सी है॥

waaah,,bahut sunadar likha hai aapne,,,

bahot khub RITU ji....

aise hi likhti rahiye.. nice to read u..

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