06/12/2007


करते हो मुझ से तुम जितना प्यार सनम,

उतना प्यार तुम से मैं भी तो कर रही हूँ ....

याद करके जागते हो तुम रात भर,

तेरी यादों में खो कर मैं भी तो न सो रही हूँ....

प्यार तुम को भी है

प्यार मैं भी तो कर रही हूँ......


सता रही है जो तुझको न मिल पाने कि कसक,

उसी आग में सनम मैं भी तो जल रही हूँ.....

घबराया है जो तू ज़माने से ज़रा

उसी ज़माने से मैं भी तो दर रही हूँ....

प्यार तुमको भी है

प्यार तुम से मैं भी तो कर रही हूँ....


है तुझको इंतजार मेरे साथ का,

दुआ मिलन की मैं भी तो कर रही हूँ.....

गर हो गए जुदा हम तो भी

खुश रहने का वादा मैं ले रही हूँ ,वादा मैं कर रही हूँ.......


प्यार तुमको भी है

प्यार मैं भी तो कर रही हूँ॥

ritu saroha

2 comments:

डाॅ रामजी गिरि said...

"प्यार तुमको भी है
प्यार तुम से मैं भी तो कर रही हूँ...."



खलिश प्यार-मोहब्बत पर आप की लेखनी ने कमल कर दिया है ,लयबद्ध लेखन में तो आप निपुण है ही.

अमिय प्रसून मल्लिक said...

"salika jeene ka gur kuch yun sikhata hai,
ke beech kanto ke bhi muskurate raho..."


...bas, aapke shabdon mein itna hi kehna hai.